दूर मंजिल है, राह लम्बी है
कोइ जरिया नहीं
बस, एक हौंसला है!!जतन करता हूँ, फिर लौट आता हूँ
नए मौड़ से शुरू करता हु फिर ये सफ़र ....जिसका
कोइ जरिया नहीं
बस, एक हौंसला है!!
धीरे धीरे चलता हूँ, सूरज संग जलता हूँ
शाम होती है ठहरता हूँ
सुबह फिर निकलता हूँ
कोइ जरिया नहीं
बस, एक हौंसला है!!
समय की गति तेज़ है, धीमी गति है मेरी
यु ही चलता रहा तो, कही हो न जाये देरी
यही सोच घबराता हूँ
पर फिर थोडा आगे निकल जाता हूँ
उस सफ़र पर जिसका
कोइ जरिया नहीं
बस, एक हौंसला है!!
आज...
बहुत थक गया हूँ
पीछे मुड़ देख रहा हूँ...
की कहा था मैं और कहा हूँ मैं
पर पाया
की जहां था मैं, वही हूँ मैं
ये तो एक कतरा मात्र है...
उस राह का जिसका
कोइ जरिया नहीं
बस, एक हौंसला है!!
एक दिन वो घडी भी आयेगी
ये राह ख़त्म हो जाएगी
मंजिल मेरे सामने होगी, मेरा हाथ थामने होगी
बस यही ख्वाब देखने को,
कुछ देर रुका हूँ
कल फिर चल दूंगा
उसी सफ़र पर जिसका
कोइ जरिया नहीं
बस, एक हौंसला है!!
"एक दिन वो घडी भी आयेगी
ReplyDeleteये राह ख़त्म हो जाएगी
मंजिल मेरे सामने होगी, मेरा हाथ थामने होगी"
सोच को शब्द देने का सच्चा और अच्छा प्रयास - नजरिया भी सही लगा - हार्दिक शुभकामनाएं
hoshala banaye rakhna bas
ReplyDeletesab acha hoga
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें