Saturday, August 6, 2011

व्योम

जिंदगी की इन चार दीवारों के परे
है एक खुला मैदान...
दिन रात के इस पहलु से दूर
है एक खुला आसमान...
मुझे वही जाना है.

बैर, द्वेष, ग्लानी या गम
इन सब से परे है एक करम...
पाप- पुण्य, जनम और मरण
इनके ऊपर है एक धरम ...
मुझे वही  अपनाना है.
 
 ये मोह-माया, कोई अपना कोई पराया
इन सब छलावो से दूर..
यह धूप, यह छाया; क्या रूह, क्या काया
इन सब बाह्य दिखावो से दूर...
मुझे मुक्ति को पाना है

"हम" से बाँटते हर "मैं" को छोड़
 हर "अहम्" को "हम" बनाना है

मुझे उस "व्योम" को पाना है!!!