Sunday, December 18, 2011

sach hai duniya walo ki hum hai "anaadi"


लिखता  हूँ...फिर  मिटाता हूँ 
खुद  को यूँ  मैं  सताता  हूँ
हर  पल  एक  नए  ख्वाब  को  पलकों  पे  बसाकर 
हकीकत  से  मुंह  छुपाता  हूँ

धुंधली  सी ये  जिंदगी  की  राहें
बिन  सोचे  चलता  जाता  हूँ
हर  मोड़  पे  रुकना  मेरी  फितरत  नहीं 
राहों के  संग  मुड  जाता  हूँ 

हौसला  नहीं  शायद  रूबरू  होने  का  अँधेरे  से 
रातो  को ..आंखें  मूँद  के  सो  जाता  हूँ 
फिर  ख्वाब  आते  तो  है  नींद  मै 
पर  सुबह  होते  ही  सब  भूल  जाता  हूँ 

नासमझी  है  या  अल्हड़पन  मेरा 
हर  दिन  को ....उसी  दिन  जी  जाता  हूँ 
कल  क्या  हुआ  था  याद  नहीं ...कल  क्या  होगा  पता  नहीं 
इतना  हिसाब  कहाँ  रख  पाता  हूँ 

अपनी  इन्ही  हरकतों  पर ..कभी  खुश  होता  हूँ 
कभी  आंसू  भी  बहाता  हूँ 
शायद  इसलिए  दुनिया  के  "समझदारो" के  बीच 
मै  "अनाड़ी" कहलाता  हूँ