दूर पवन के वेग से.... हिलते हुए वो सूखे पत्ते
आँधियों की धूल से .... अश्रु लाती हुई वो पलके
पानी की एक बूँद को .....तरसते हुए वो सूखे पत्ते
उस मुसलाधार बारिश मे....भीगते मेरे हसीं सपने
पतझड़ की मिटटी से ...ढके हुए वो सूखे पत्ते
सावन मे भी पतझड़....देखती मेरी ये आँखें
उस हरियाली से उजाड़ कर...बनाये गए ये सूखे पत्ते
वो सुनहरी सपने छीन कर .....बनाई गयी मेरी वीरान ऑंखें
प्यार के एक कोमल स्पर्श से...हो जायेंगे हरे ये पत्ते
प्यार की ही एक झलक देखकर....चमक उठेंगी फिर ये ऑंखें!!!!