आज करीब एक साल बाद... घर की तरफ जाते हुए, इस हवाईजाहज में बैठे हुए खिड़की से बहार उडते हुए बादलो को देखते हुए, कुछ लिखने का मन हुआ, पर क्या ये पता नही........
कुछ लिखने का मन है
क्या, पता नहीं....
क्यों, ये भी नहीं पता....
पर है, कुछ लिखने का मन है
दिमाग को कुरेदकर
सोच को उमेड़कर
इस कागज़ पर
कुछ उलेड़ने का जतन है...
कुछ लिखने का मन है
आँखें मूंदता हूँ तो भी
कुछ ख्याल नहीं आता
कोई पहेली, कोई उलझन
या, कोई सवाल भी नहीं आता
फिर भी कुछ भारीपन है
शायद इसलिए
कुछ लिखने का मन है
क्या लिखूं,
और कौन पढ़ेगा, जो लिखूं
सबका अपना आइना है
मैं किसीको कैसे दिखूं
फिर भी सामने आने की लगन है
शायद इसलिए
कुछ लिखने का मन है
बादलों के ऊपर उड़ कर भी
हवा से बातें कर के भी
समुद्र की गहराई को
छूने का मन है
आज कुछ लिखने का मन है।
कुछ लिखने का मन है
क्या, पता नहीं....
क्यों, ये भी नहीं पता....
पर है, कुछ लिखने का मन है
दिमाग को कुरेदकर
सोच को उमेड़कर
इस कागज़ पर
कुछ उलेड़ने का जतन है...
कुछ लिखने का मन है
आँखें मूंदता हूँ तो भी
कुछ ख्याल नहीं आता
कोई पहेली, कोई उलझन
या, कोई सवाल भी नहीं आता
फिर भी कुछ भारीपन है
शायद इसलिए
कुछ लिखने का मन है
क्या लिखूं,
और कौन पढ़ेगा, जो लिखूं
सबका अपना आइना है
मैं किसीको कैसे दिखूं
फिर भी सामने आने की लगन है
शायद इसलिए
कुछ लिखने का मन है
बादलों के ऊपर उड़ कर भी
हवा से बातें कर के भी
समुद्र की गहराई को
छूने का मन है
आज कुछ लिखने का मन है।